आशुतोष शशाँक शेखर,
चन्द्र मौली चिदंबरा,
कोटि कोटि प्रणाम शम्भू,
कोटि नमन दिगम्बरा ॥
निर्विकार ओमकार अविनाशी,
तुम्ही देवाधि देव,
जगत सर्जक प्रलय करता,
शिवम सत्यम सुंदरा ॥
निरंकार स्वरूप कालेश्वर,
महा योगीश्वरा,
दयानिधि दानिश्वर जय,
जटाधार अभयंकरा ॥
शूल पानी त्रिशूल धारी,
औगड़ी बाघम्बरी,
जय महेश त्रिलोचनाय,
विश्वनाथ विशम्भरा ॥
नाथ नागेश्वर हरो हर,
पाप साप अभिशाप तम,
महादेव महान भोले,
सदा शिव शिव संकरा ॥
जगत पति अनुरकती भक्ति,
सदैव तेरे चरण हो,
क्षमा हो अपराध सब,
जय जयति जगदीश्वरा ॥
जनम जीवन जगत का,
संताप ताप मिटे सभी,
ओम नमः शिवाय मन,
जपता रहे पञ्चाक्षरा ॥
आशुतोष शशाँक शेखर,
चन्द्र मौली चिदंबरा,
कोटि कोटि प्रणाम शम्भू,
कोटि नमन दिगम्बरा ॥
कोटि नमन दिगम्बरा..
कोटि नमन दिगम्बरा..
कोटि नमन दिगम्बरा..
आशुतोष शशांक शेखर: भावार्थ और व्याख्या
प्रारंभिक श्लोक
“आशुतोष शशाँक शेखर, चन्द्र मौली चिदंबरा,
कोटि कोटि प्रणाम शम्भू, कोटि नमन दिगम्बरा॥”
अर्थ:
इस श्लोक में भगवान शिव की महिमा का गुणगान किया गया है। उन्हें “आशुतोष” कहा गया है, जिसका अर्थ है जो शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं। “शशांक शेखर” यानी उनके सिर पर चंद्रमा विराजमान है। “चन्द्र मौली” भी इसी संदर्भ में है। “चिदंबरा” का अर्थ है जो चेतना के स्वामी हैं। शम्भू और दिगम्बरा भी शिव के अन्य नाम हैं, जिनके प्रति भक्त अपनी श्रद्धा प्रकट करते हुए बार-बार नमन करते हैं।
भगवान शिव के विशेषण
“निर्विकार ओमकार अविनाशी,
तुम्ही देवाधि देव,
जगत सर्जक प्रलय करता,
शिवम सत्यम सुंदरा॥”
अर्थ:
इस भाग में शिव को अविनाशी (जिसका नाश नहीं हो सकता) और निर्विकार (जो बिना किसी दोष के हैं) बताया गया है। “ओमकार” यानी शिव उस आदिशक्ति के प्रतीक हैं, जिनसे सृष्टि की उत्पत्ति हुई है। “देवाधि देव” यानी देवताओं के भी देवता हैं। शिव सृष्टि के रचयिता हैं और प्रलय के समय इसे समाप्त भी करते हैं। वे सत्य और सुंदरता के प्रतीक हैं।
महायोगी और कालेश्वर
“निरंकार स्वरूप कालेश्वर,
महा योगीश्वरा,
दयानिधि दानिश्वर जय,
जटाधार अभयंकरा॥”
अर्थ:
यहां शिव को निराकार (रूप से परे) और कालेश्वर (समय के स्वामी) के रूप में प्रस्तुत किया गया है। वे महायोगी हैं, जो योग के परम ज्ञाता हैं। वे दया के सागर हैं और दान देने वाले हैं। “जटाधार” यानी जिनके मस्तक पर जटा (बालों की लटें) हैं, और “अभयंकर” यानी जो भय को नष्ट करने वाले हैं।
शिव की शक्ति और पराक्रम
“शूल पानी त्रिशूल धारी,
औगड़ी बाघम्बरी,
जय महेश त्रिलोचनाय,
विश्वनाथ विशम्भरा॥”
अर्थ:
यहां शिव को त्रिशूल धारी कहा गया है, जो उनके त्रिशूल धारण करने की महिमा बताता है। “औगड़ी” यानी जो तपस्वी हैं और “बाघम्बरी” यानी जो बाघ की खाल पहनते हैं। “त्रिलोचनाय” यानी जिनकी तीन आंखें हैं, और “विश्वनाथ” यानी जो पूरे ब्रह्मांड के स्वामी हैं। “विशम्भरा” का अर्थ है जो सारे विश्व का भार उठाते हैं।
महादेव के प्रति श्रद्धा
“नाथ नागेश्वर हरो हर,
पाप साप अभिशाप तम,
महादेव महान भोले,
सदा शिव शिव संकरा॥”
अर्थ:
इस भाग में शिव को “नागेश्वर” कहा गया है, यानी जो नागों के स्वामी हैं। वे सारे पाप, श्राप और अंधकार को हरने वाले हैं। “महादेव” यानी सबसे बड़े देवता, और वे भोलेनाथ भी हैं, यानी सरल हृदय वाले। वे सदा शिव (मंगलकारी) और संकरा (सभी को सुख देने वाले) हैं।
भक्ति और क्षमा
“जगत पति अनुरकती भक्ति,
सदैव तेरे चरण हो,
क्षमा हो अपराध सब,
जय जयति जगदीश्वरा॥”
अर्थ:
यहां भक्त अपनी भक्ति को शिव के चरणों में समर्पित करता है। वह शिव से प्रार्थना करता है कि उसके सभी अपराध क्षमा किए जाएं। शिव को “जगदीश्वर” कहा गया है, जो संसार के स्वामी हैं और उन्हें बार-बार जयकारा दिया जाता है।
जन्म और मोक्ष का मार्ग
“जनम जीवन जगत का,
संताप ताप मिटे सभी,
ओम नमः शिवाय मन,
जपता रहे पञ्चाक्षरा॥”
अर्थ:
यह भाग बताता है कि शिव की भक्ति से जन्म और जीवन के सभी कष्ट और संताप मिट जाते हैं। “ओम नमः शिवाय” का जप करना मोक्ष का मार्ग है, जो पांच अक्षरों वाला यह मंत्र जीवन के सभी कष्टों को समाप्त कर देता है।
समापन श्लोक
“आशुतोष शशाँक शेखर,
चन्द्र मौली चिदंबरा,
कोटि कोटि प्रणाम शम्भू,
कोटि नमन दिगम्बरा॥”
अर्थ:
अंत में फिर से भगवान शिव की स्तुति की गई है और उन्हें बार-बार प्रणाम किया जाता है।